गणेश : विघ्नहर्ता और शुभकारक
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को सर्वप्रथम पूजनीय देवता माना जाता है। उनके बिना कोई भी शुभ कार्य संपन्न नहीं माना जाता है। उनकी मूर्ति मंदिरों, घरों और सार्वजनिक स्थानों पर सर्वत्र देखी जा सकती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान गणेश इतने लोकप्रिय क्यों हैं? उनके रूप और गुणों का क्या अर्थ है? आइए, आज हम भगवान गणेश के बारे में विस्तार से जानें।
किसी भी कार्य के प्रारंभ से पूर्व उनकी पूजा अनिवार्य है। ऐसा करने से वह कार्य बिना किसी विघ्न और बाधा के पूर्ण हो जाता है। भगवान गणेश शुभता, बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। उनके भाई कार्तिकेय और बहन अशोक सुंदरी हैं।
शिव पुराण में बताया गया है की भगवान श्री गणेश का जन्म माता पार्वती के शरीर के मैल से माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से एक पिंड बनाकर उसमें आत्मा का प्रवेश करवाया। जिसके बाद वह पिंड सजीव हो उठा और यह यह पिंड सजीव बालक के रूप में सामने आया।
शिव पुराण में बताया गया है, माता पार्वती स्नान करने के लिए जब गुफा के अंदर जा रही थी तो उन्होंने इस नन्हे बालक को आदेश दिया कि गुफा के अंदर किसी को भी प्रवेश ना दिया जाए। माता पार्वती के गुफा के भीतर जाते ही भगवान शिव वहां पहुंच जाते हैं। मां की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने भगवान शिव को भी गुफा के अंदर प्रवेश करने से रोक दिया जिस पर भगवान शिव क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपने त्रिशूल से भगवान श्री गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। जैसे ही सर कटा वैसे ही माता पार्वती की चीख–पुकार से पूरी सृष्टि कम्पायमान हो उठी। हर तरफ त्राहि–त्राहि मच गई जिसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए एक नन्हे हाथी का सिर भगवान गणेश के धड़ से जोड़ दिया। तभी से भगवान श्री गणेश का सिर हाथी और धड़ बालक का बना है और इसी स्वरूप में हम भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना करते हैं।
हिंदू धर्म के पंचायतन में सर्वप्रथम पूजनीय देव, ज्ञान के दीपक, कलाओं के संरक्षक, विघ्नहर्ता और मंगलकारी आकृति – भगवान गणेश। उनके अविरल आनंद की प्रतिमूर्ति और चंचल कृपा हम सबको जीवन के पथ पर आगे बढ़ाती है। आइए आज सफर करें उनके रूप, गुण, कहानियों और महानता के अनंत सागर में, और खोजें उनके शब्दों के उपवन में छिपे हुए अनमोल रत्नों को।
भगवान गणेश की पत्नी और बच्चे
गजानन की दो पत्नियां हैं– रिद्धि और सिद्धि। गणेश जी को रिद्धि से क्षेम और सिद्धि से लाभ नाम के दो पुत्र हैं। जब कार्तिकेय दक्षिण में असुरों से संग्राम के लिए गए थे और उन्होंने युद्ध में असुरों को पराजित कर दिया था, तब भगवान शिव ने गणेश जी के पुत्र का नाम क्षेम रखा। माता पार्वती उनको प्रेम से लाभ नाम से पुकारती थीं। इस तरह से गणेश जी के दो पुत्रों का नाम शुभ और लाभ हुआ।
गणेश जी के प्रतीक और उनका महत्व
संस्कृत शब्द ‘गण’ यानी समुदाय का स्वामी – यही है गणेश नाम का सार। वे शिवजी के अनुचरों, गणों के अधिपति हैं। उनका स्वरूप उतना ही अनोखा है जितना उनका नाम। मानव तन पर हाथी का मस्तक, एक दाँत, चार हाथ और मोटा पेट – एक सरल आकृति में गहन दर्शन समाहित है।
- एकदाँत: एकाग्रता और विवेक का प्रतीक। ध्यान लगाकर सफलता पाने का संदेश।
- चारहाथ: ज्ञान, कर्म, धर्म और मोक्ष के चार पुरुषार्थों का प्रतिनिधित्व। हमें हर पहलू में संपूर्ण होने का मार्गदर्शन।
- मोटापेट: उदारता और संपूर्ण स्वीकृति का प्रतीक। सभी का स्वागत करने और जीवन के उतार-चढ़ाव को हंसते हुए झेलने का पाठ।
- हाथीकासिर: बुद्धि, विवेक और शक्ति का प्रतीक। ज्ञान से जीवन की बाधाओं को ध्वस्त करने का संदेश।
- चूहा: बुद्धि और चतुराई का प्रतीक। छोटे प्रयासों से बड़े लक्ष्यों तक पहुँचने का रास्ता।
विघ्नहर्ता से शिक्षा दीपक तक:
भगवान गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ के रूप में सबसे ज्यादा जाना जाता है। वे हमारे मार्ग में आने वाली बाधाओं को सुगम बनाते हैं। लेकिन गणेश सिर्फ विघ्नहर्ता नहीं, ज्ञान के दीपक और विद्या के दाता भी हैं। छात्र परीक्षाओं में सफलता के लिए उनकी आराधना करते हैं, लेखक और कलाकार रचनात्मकता के लिए। गणेश अपनी चार भुजाओं में ज्ञान, संगीत, कला और लेखन के उपकरण धारण करते हैं। वे हमें हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए प्रेरित करते हैं।
कथाये
भगवान गणेश से जुड़ी पौराणिक कथाएँ उनके गुणों और जीवन दर्शन को और भी स्पष्ट करती हैं। उनके जन्म की लीला ही अनोखी है। माता पार्वती ने उन्हें अपनी शक्तियों से उत्पन्न किया और द्वारपाल बनाया। एक बार जब भगवान शिव घर लौटे तो गणेश ने उन्हें रोक दिया, जिससे क्रोधित होकर शिवजी ने उनके एक दाँत तोड़ दिए। लेकिन क्रोध की जगह शिवजी ने गणेश को पहला पूजनीय देवता घोषित कर दिया। यह कथा सिखाती है कि दृढ़ता के साथ अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए और उदारता का भाव बनाए रखना चाहिए।
एक अन्य प्रसिद्ध कथा गजमुखसुर से युद्ध की है। यह राक्षस हाथी का मुख धारण कर धर्म को नष्ट करने का प्रयास कर रहा था। गणेश ने इस युद्ध में गजमुखसुर का वध करके धर्म की रक्षा की। यह कथा बताती है कि बुद्धि और धैर्य से बुराई का नाश किया जा सकता है।
गणेश उत्सव :
भगवान गणेश के जन्मदिन को हर साल गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिरों में गणेश जी की विशेष पूजा होती है और घरों में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाती है। दस दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में भजन-कीर्तन, जुलूस और प्रसाद का वितरण होता है। दसवें दिन गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है।
भगवान गणेश भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं। उनकी लोकप्रियता उनके गुणों और कार्यों के कारण है। वह हमें उम्मीद, ज्ञान, बुद्धि और सफलता प्रदान करते हैं। इसलिए, आइए हम सभी भगवान गणेश की पूजा करें और उनके आशीर्वाद से अपना जीवन सफल बनाएं।
कुछ अतिरिक्त रोचक तथ्य:
- भगवान गणेश को लिखने में बहुत कुशल माना जाता है और उनके पास विशेष क्षमता भी है। जब ऋषि वेदव्यास ने एक ऐसे लेखक की खोज की, जो बिना रूके महाभारत लिख सकता था। गणपति महाराज ने तब महाभारत लिखा था।
- गणेश जी को दो चीजें सबसे पसंद हैं। पहले मोदक, फिर लाल सिंदूर।
- सभी जानते हैं कि भगवान गणेश की सवारी मूषक है, लेकिन आप शायद नहीं जानते कि गणपति ने एक राक्षस को चूहा बनाकर उसे अपना वाहन बनाया, जिससे वह मूषकराज कहलाता है।
- भगवान गणेश को मोदक बहुत पसंद हैं।
- भगवान गणेश को गणेश मंत्र ‘ॐ गं गणपते नमः’ से प्रसन्न किया जा सकता है।
- गणेश चतुर्थी के अलावा, गणेश जयंती और गणेश पंचमी भी भगवान गणेश के लिए महत्वपूर्ण दिन हैं।