*अनंत चतुर्दशी: महिमा, महत्व और पूजा

 

 चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान विष्णु के अनंत रूप की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। अनंत चतुर्दशी का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के जीवन से दुखों, कष्टों और समस्याओं का अंत करना है, जिससे उसे सुख-समृद्धि और शांति प्राप्त हो सके।

 

अनंत चतुर्दशी की पौराणिक कथा

 

अनंत चतुर्दशी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है। महाभारत काल में जब पांडव वनवास में थे, तब उनकी पत्नी द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से अपनी समस्याओं के समाधान के लिए मार्गदर्शन मांगा। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने का सुझाव दिया और कहा कि इस व्रत को करने से सभी प्रकार की समस्याओं का अंत होगा। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि एक बार कौरवों के अत्याचारों से बचने के लिए राजा सुतासोम ने भी यह व्रत किया था, जिससे उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिली।

कहा जाता है कि इस व्रत के दौरान भगवान विष्णु के अनंत रूप का ध्यान किया जाता है और 14 गांठों वाला अनंत धागा बांधा जाता है। यह धागा जीवन के 14 भौतिक और आध्यात्मिक गुणों का प्रतीक होता है, जो व्यक्ति के जीवन को समृद्ध और सफल बनाते हैं। 

 

अनंत चतुर्दशी व्रत विधि

 

इस दिन प्रातः काल उठकर स्नान कर व्रती शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं। पूजा स्थल को स्वच्छ कर, रंगोली से सजाया जाता है। इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित की जाती है। पूजा सामग्री में नारियल, फल, फूल, कलावा, धूप-दीप, अक्षत और मिठाई का उपयोग होता है।

 

पूजा के दौरान भगवान विष्णु के अनंत रूप की कथा सुनी जाती है और उनके 14 गांठों वाले धागे का ध्यान किया जाता है। इस धागे को पुरुष अपने दाएं हाथ में और महिलाएं अपने बाएं हाथ में बांधती हैं। इसे “अनंत धागा” कहा जाता है, जो सुख, समृद्धि और समस्त प्रकार की समस्याओं के निवारण का प्रतीक माना जाता है।

 

**अनंत चतुर्दशी: आस्था और पूजा का महापर्व**

अनंत चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक पवित्र पर्व है, जो हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा और गणेश विसर्जन से जुड़ा हुआ है। इस दिन लोग भगवान विष्णु की उपासना कर, उनसे सुख, समृद्धि और जीवन की समस्याओं से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।

अनंत चतुर्दशी का आध्यात्मिक महत्व

इस पर्व का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की आराधना करना है, जो सृष्टि के पालनकर्ता माने जाते हैं। उनका अनंत रूप समय और स्थान से परे है, जो भक्तों को जीवन में आने वाली कठिनाइयों से उबरने में सहायता करता है। भगवान विष्णु की पूजा से व्यक्ति को जीवन में सुख और शांति प्राप्त होती है, और वह अनंतकाल तक उनकी कृपा का अनुभव करता है। इस दिन बांधे जाने वाले “अनंत धागे” का महत्व है कि यह व्यक्ति के जीवन के सभी संकटों से रक्षा करता है।

### अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण किए जाते हैं। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को पंचामृत और जल से स्नान कराकर पूजा की जाती है। भगवान को फल, फूल, मिठाई, धूप-दीप, और नारियल अर्पित किया जाता है। पूजा के दौरान अनंत धागा, जो 14 गांठों वाला होता है, भगवान को अर्पित कर, फिर उसे अपने हाथ में बांधा जाता है। यह धागा जीवन के 14 संकटों से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।

### गणेश विसर्जन की परंपरा

अनंत चतुर्दशी का एक अन्य प्रमुख हिस्सा गणेश विसर्जन है। गणेश चतुर्थी के दौरान स्थापित गणपति की मूर्तियों को इस दिन विसर्जित किया जाता है। यह प्रक्रिया भक्तों के लिए भगवान गणेश से विदाई लेने और अगले वर्ष पुनः आने की कामना करने का अवसर होता है। पूरे देश में गणेश विसर्जन बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

### पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता

गणेश विसर्जन के समय पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखना जरूरी है। मिट्टी से बनी मूर्तियों का उपयोग करना और घर में छोटे जलाशयों में विसर्जन करना पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रतीक है। इस प्रकार, त्योहार का आनंद लेते हुए प्रकृति का संरक्षण भी संभव है।

 

अनंत चतुर्दशी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह जीवन के अनंत सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। भगवान विष्णु की आराधना और गणेश विसर्जन से जुड़े इस पर्व को मनाते समय श्रद्धा और भक्ति से भरा वातावरण हर किसी के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है।

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